यूथ इण्डिया फर्रुखाबाद। अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन से पहले और उसके बाद भी अनेकों प्रकार की भ्रान्तियाँ फैलाने का प्रयास उन लोगों द्वारा किया जा रहा है जो हिन्दू समाज के होते हुए भी हिन्दुओं के हित चिन्तक कभी रहे ही नही... वह भगवान परशुराम के मन्दिर बनवाने की हवा फैलाकर समाज को विभाजित करने पर उतारू हो गये हैं। उन्हें यह नहीं मालूम कि भगवान परशुराम ने अन्यायियो और अत्याचारियो को अपने निज पौरूष से मिट्टी में मिला दिया था। उनकी क्रोधाग्नि में अन्याय और अत्याचार स्वाहा हो गया था किन्तु जब उन्हें ज्ञात हुआ कि इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए राम का जन्म हो गया है तो उन्होंने अपने धनुष को भगवान को स्वयं समर्पित करअपने विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए कहा कि -
राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू।
देत चापु आपुहिं चलि गयऊ। परसुराम मन बिसमय भयऊ।।
भगवान परशुराम जैसी श्रेष्ठता का दूसरा उदाहरण इस पृथ्वी पर नहीं मिलेगा उन्होंने बिना बिलम्ब किये हुए राम से कहा कि ष्अनुचित बहुत कहेउ अज्ञाता, छमहु छमा मन्दिर दोउ भ्राता भगवान परशुराम दीन दुखियों के लिए दया के अवतार बनकर अवतरित हुए और अपना कार्य पूर्ण समझकर आगे का दायित्व प्रभु राम को देकर वन मे तपस्या करने हेतु यह कह कर चले गये कि ष्कहि जय जय जय रघुकुल केतू, भृगुपति गये बनहि तप हेतू।
यही कारण है कि भगवान परशुराम के वंशज अपने ठाकुर जी को भोग लगाये बिना जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। भगवान परशुराम का मंदिर तो उसी दिन सार्थक होगा जब काशी मे उनके गुरु शिवजी मुक्त हो और मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण अपने जन्म स्थान पर मुक्त हो।
- ब्रज किशोर मिश्र एडवोकेट
प्रदेश अध्यक्ष
लोकतंत्र सेनानी समिति, उ॰प्र॰
राम रमापति कर धनु लेहू, खैचहु चाप मिटहि संदेहू ....