सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ....


यूथ इण्डिया संवाददाता, फर्रुखाबाद। सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।।
सन् 1975 में आपातकाल के दौरान मुझे जिला कारागार फतेहगढ से केन्द्रीय कारागार फतेहगढ में एक ऐसे स्थान पर ले जाया गया जहाँ के मुख्य द्वार पर एकान्तवास लिखा था। जब उस काल कोठरी के अन्दर मुझे ले जाया गया तो वहाँ भी रामचरितमानस की उपरोक्त दोहा मैंने लिखा पाया। तब विद्यार्थी जीवन में होने के कारण उसके गूढ़ अर्थ को मै समझ नहीं सका था, परन्तु उक्त दोहे का अर्थ उस समय केन्द्रीय कारागार फतेहगढ में सेवारत चिकित्सक डाॅ. राधामोहन शुक्ल जी ने मुझे भली भांति समझा दिया था। परिणाम इंदिरा गांधी के पतन के तौर पर 1977 में सामने आ गया। 
आज भयंकर संकट के समय नीति नियंताओं को स्मरण रखना चाहिए कि सदाचार और संयम ही हमारा सहारा बनेगा। इस संकट के समय यदि वित्तीय संकट का समाधान सावधानीपूर्वक न किया गया तो आर्थिक विपत्ति के बादल संकट की बरसात करके ही रहेंगे। साधारण भाषा में कहें तो आर्थिक चोरों और चोरी को प्रोत्साहन देने के लिए बट्टा खाता का प्रयोग किया जाता है। बहुधा इस खाता का प्रयोग वित्तीय घोटाला करने के लिए किया जाता है। सरकार को अपने अधिकारों का प्रयोग कर इसे वर्जित करना चाहिए। सरकारी खर्चों और जनसेवको के खर्चों मे भारी कटौती करके कृकृषि तथा अन्य उद्योगों को प्रोत्साहन देकर व श्रमिकों का समायोजन करके वित्तीय तरलता को बनाये रखने का पृयास  करना चाहिए। देश का सौभाग्य है कि देश के प्रधानमंत्री इस सि(ान्त का अनुसरण करने बाले हैं । 
कभी न मोह सके हैं हमको सुख वैभव के मधु आकर्षण, हम तो चलते ही जाते हैं पावन विश्वासों पर क्षण क्षण। प्रधानमंत्री के साथ सभी जन सेवको को यह सि(ान्त अंगीकार करना ही चाहिए।
    - ब्रज किशोर मिश्र एडवोकेट
   प्रदेश अध्यक्ष
    लोकतंत्र सेनानी समिति, उ॰प्र॰