ज्ञान प्रकाश शर्मा
यूथ इण्डिया अमृतपुर/ फर्रुखाबाद। सपोर्ट इंडिया वेलफेयर सोसाइटी आगरा की जनहित याचिका पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को राज्य में सन 1951-52 के राजस्व अभिलेखों में दर्ज तालाबों से अतिक्रमण हटा कर और तालाबों की जमीन पर दिए गए पट्टे समाप्त कर उन्हें बहाल करने का निर्देश दिया था । कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को राजस्व परिषद के चेयरमेन के परामर्श से इस संदर्भ में एक मानीटरिंग कमेटी गठित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि प्रदेश के प्रत्येक जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी ;वित्त एवं राजस्वद्ध को आदेश दिया जाए कि तालाबों की सूची तैयार करें एवं तालाबों पर हुए अतिक्रमण का खाका तैयार करें । तालाबों से अतिक्रमण हटा कर बहाली रिपोर्ट पेश करें। कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को तालाबों से अतिक्रमण हटा कर उनकी पुर्नबहाली करने का आदेश दिया था साथ ही मुख्य सचिव द्वारा गठित मानीटरिंग कमेटी को प्रत्येक छः माह में कारवाई रिपोर्ट सौपने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा कि राज्य के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों के पालन में घोर लापरवाही बरती है और अब भी अधिकारियों द्वारा लापरवाही बरती जा रहीं है तो उनके खिलाफ संबंधित नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने कहा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 18 वर्ष बीत जाने के बाद भी उसका पालन नहीं किया जा रहा है। यह जनहित याचिका आगरा के राजपुर गांव में प्लाट संख्या 253 व 254 स्थित तालाब को लेकर दाखिल की गई थी । कोर्ट ने जिलाधिकारी आगरा को तालाब बहाल कर अपनी रिपोर्ट तीन माह के भीतर महानिबंधक के समक्ष पेश करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा यदि किसी तालाब पर पट्टे दिए गए हैं तो जिलाधिकारी कानूनी कार्रवाई करें और अवैध कब्जे हटा कर उसे बहाल किया जाए। तालाबों को अतिक्रमण मुक्त कराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने भी दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हिंच लाल तिवारी , जगपाल व अन्य की याचिका में देश के सारे झील , तालाब , झरनों को अतिक्रमण मुक्त करने का आदेश दिया था। इसके तहत जिन तालाबों पर कब्जा करके मकान बनाए गए थें उसे भी हटाने के निर्देश दिए थे। साथ ही भविष्य में अतिक्रमण न होनें पाए व तालाब , झरना व झीलों को संरक्षित करना था लेकिन उसका पालन अब तक न हो पाया ।
इसी कड़ी में फर्रुखाबाद जिले का तहसील व विधान सभा स्तर और स्वतंत्रता संग्राम की अवधि 1857 से 1947 तक के सभी आंदोलनों का गवाह लगभग छः सौ वर्ष पूर्व बसा ऐतिहासिक गांव अमृतपुर जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीद व सेनानियों की जन्म भूमि है । अमृतपुर , जिले का शायद पहला गांव होगा जहां स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से अभिलेखों में दर्ज व राजस्व अभिलेखों में सन 2004 के इंतखाब में दर्ज ग्यारह तालाब ;सभी पुराने तालाबद्ध हैं जिनमें आधे तालाबों पर किनारे पर बसे दबंग लोगों द्वारा अतिक्रमण कर मकान व चैपाल बना लिये गये। तालाबों पर हुए अतिक्रमण के संबंध में अधिकारियों को अवगत भी करवाया गया परंतु कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। उच्च स्तर पर की गई तालाब अतिक्रमण की शिकायत की जांच नीचे आती आती ठंडे बस्ते में चली गई । जन प्रतिनिधियों की पुनः वोट प्राप्त कर पांच वर्ष राज करने और सम्मान प्राप्त करने की ख्वाइश और प्रशासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों की अनदेखी से अतिक्रमण करने वालों को बल मिला। तालाब अतिक्रमण व आराजी के संबंध में पूछने पर लेखपाल का कहना कि तालाब आबादी में दर्ज हो गए , मान लिया जाए परंतु इतने पुराने तालाबों की आराजी तो उसी स्थान पर ही है। अमृतपुर में आज से साठ वर्ष पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पक्ष में जिला जज न्यायालय द्वारा पारित आदेश की कमीशन रिपोर्ट में उनके घर के सामने तालाब की आराजी स्थिति और आज की तालाब आराजी स्थिति में अतिक्रमण ने दशा बदल दी। इस वर्ष फरवरी में अमृतपुर जो स्मार्ट गांव बनाने जा रहा जिसके निरीक्षण और भ्रमण के दौरान मुख्य विकास अधिकारी ने अतिक्रमण हुए तालाबों को देखा उनको अतिक्रमण हटवाने हेतु निवेदन किया गया उन्होने अतिक्रमण हुए तालाबों पर पार्क व बारात घर बनवाने को कह दिया। जबकि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने तालाबों से अतिक्रमण व अवैध कब्जा हटवाने और तालाब संरक्षण का आदेश पारित कर बल प्रदान किया है। कोर्ट और प्रशासनिक अधिकारियों की सोच में इतना बड़ा अंतर क्यों है। शासन प्रशासन तालाब संरक्षण की जिम्मेदारी समझ कर तालाब संस्कृति को बढ़ावा दे साथ ही लुप्त हो रहे तालाबों की खुदाई करवा कर सौदर्यीकरण करवाया जावे।