यूथ इण्डिया संवाददाता, फर्रुखाबाद। रामचरितमानस की इस चैपाई में तात्विक तत्व है। संकट के समय हमें सतर्कता के साथ उसे समझना पड़ेगा यदि स्वप्न में कोई वस्तु खोती या छूटती है अथवा उसको क्षति पहुंचती है तो क्या सुप्तावस्था में रहकर उसका निवारण संभव है? निवारण तो जागने पर ही होगा। आज एक भयानक संकट से भारत ही नही सारा विश्व थर्रा उठा है। यह वैश्विक महामारी केवल चीन की देन है। यह सि( हो चुका है। संकट के इस दौर में भी चीन ने जिस प्रकार दोयम दर्जे की पीपीई सुरक्षा किट भेजकर भारत समेत विश्व के अन्य देशों को बड़े मानवीय नुकसान की तरफ धकेलने की कोशिश की है। उससे यह स्पष्ट है कि धोखेबाज चीन के ऊपर कदापि विश्वास नही किया जा सकता। इस देश ने सन 1962 में भी वह घाव दिया था जो कभी भरा नहीं जा सकता। आज सभी के मन में यह भाव होना चाहिए कि-
आताताई चीन से सारी शक्ति हटा लो
अपना कार्य स्वयं करो बस यही शांति है सुख है
ऐसा नहीं है कि है हिंदुस्तान आज पहली बार अपने प्रधानमंत्री के आह्वान पर एक साथ खड़ा हुआ है, सन 1962 में भी पंडित जवाहरलाल नेहरू के इस आह्वान पर कि गहने दो छोड़ो श्रृंगार, इनसे मिलते हैं हथियारष् पर भारत की महान जनता ने इस देश के रक्षा कोष में स्वर्ण भंडार भर दिए थे। आज देश के नीति-नियंता इस पवित्र भाव को समझें और समझे रामचरितमानस की इस चैपाई को कि-
हित अनहित पशु पक्षी जाना, मानव गुण गन ज्ञान विधाना
सतर्कता के साथ इस महामारी से लड़ने से ही हम विजयी होंगे। आज इस देश की जनता ने जिस संयम और धैर्य का परिचय दिया है वह सारे विश्व के लिए अनुकरणीय है, हमारा देश संकट की घड़ी में सदैव एक था और एक रहेगा। इसका सारा श्रेय इस देश की महान जनता को जाता है।
- बृज किशोर मिश्र एडवोकेट
प्रदेश अध्यक्ष
लोकतंत्र सेनानी समिति ;उ॰ प्र॰द्ध